स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात ‘स्वत्व’ की अनुभूति के आधार पर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में ‘स्व’ का तंत्र कैसे विकसित हो यही जनः मन द्वारा अपेक्षित थी। यदि बालक के मन में स्वाभिमान, स्वानुशासन, स्वावलम्बन, स्वधर्म, स्वदेशप्रेम, स्वसंस्कृति तथा अतीत के गौरवशाली परम्परा आदि के प्रति आत्मीयता व अपनत्व का भाव विकसित किया गया होता तो भावात्मक एकात्मता प्रत्येक भारतीय का स्वभाव बन जाता। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में योग्य व्यक्तित्व का अभाव व अकाल आज दिखायी न देता। राष्ट्र निर्माण, कल-कारखानों के विकास, यातायात, स्वास्थ्य,शिक्षा आदि अनेक योजनाएं बनी परन्तु जिनके बल पर राष्ट्र की शा स्वतता निहित है अर्थात् व्यक्तित्व निर्माण का कार्य नहीं हुआ।